कहीं सोनिया अपने त्याग को भुनाने की कोशिश में तो नहीं!
लिमटी खरे
कांग्रेस में सामंतशाही आज भी बदस्तूर जारी है। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति की धुरी आज भी नेहरू
गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही समटी दिखती है। कांग्रेस की आधिकारिक वेब साईट पर भी उपर महात्मा
गांधी के अलावा इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के बाद नेहरू गांधी परिवार की जिंदा पीढ़ी में इटली मूल की
सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ही विशेष फोकस दिया जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि सवा
सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस के पास इस परिवार के अलावा
और कोई चेहरा है ही नहीं। पूर्व महामहिम राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अपनी आत्मकथा में
सोनिया की स्तुति कर अपनी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगवा लिया है। आशंका तो यह व्यक्त की
जा रही है कि सालों बाद अपनी तारीफ में कशीदे गढ़वाकर कहीं राहुल गांधी की ताजपोशी के पहले सोनिया
गांधी खुद ही देश का वज़ीरे आज़म बनने की तैयारी में तो नहीं हैं?
मिसाईल मेन अब्दुल कलाम को सारा देश सेल्यूट ही करता आया है। उनकी आत्मकथा ‘टनिंग प्वाईंट:
अ जर्नी थ्रू चेलेन्जस‘ के बाजार में आने के पहले आए कुछ अंशों से उनकी छवि धूल धुसारित हो गई है।
इसके पीछे कांग्रेस के रणनीतिकारों की क्या सोच है यह तो वे ही जानें पर यह सच है कि इसमें सोनिया
गांधी को हीरो बनाकर कलाम ने अपनी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह अवश्य ही लगवा लिए हैं। सारा
देश जानता है कि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार 2004 में देश पर शासन करने
आई और उसका शासन आज भी जारी है। संप्रग सरकार के राज में इस कदर घपले घोटाले और भ्रष्टाचार
के तांडव सामने आए हैं कि हर भारतीय को अब शर्म आने लगी है।
यह सब देखने के बाद भी अगर किसी की मोटी चमड़ी पर कोई असर नहीं हुआ है तो वह है कांग्रेस के आला
नेता। एक समय था जब विदेशी आक्रांता आकर देश को लूटते थे और देशवासी बेबस सब कुछ देखने
सुनने को मजबूर होते थे। आज हालात बदल गए हैं। आज देश के ही लोग देश को सरेराह लूट रहे हैं और
देश के गणतंत्र के पहरूए अपनी मौन सहमति उन्हें दे रहे हैं। पिछले एक दशक का इतिहास साक्षी है कि
भ्रष्टाचार, घपले घोटालों पर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी ने
एक भी शब्द नहीं बोला है।
अब जबकि यह मान लिया गया है कि आने वाले समय में अगर कांग्रेस या उसका गठबंधन सत्ता में
आया तो देश की बागडोर राहुल गांधी को ही संभालना है तब अचानक महामहिम राष्ट्रपति के चुनाव
के एन पहले आखिर एसी क्या जरूरत आन पड़ी कि मीडिया में सोनिया गांधी की तारीफों में कशीदे गढ़ने
आरंभ हो गए हैं? सोनिया को हीरो बनाने के पीछे के निहितार्थ सियासी गलियारों में खोजे जाने लगे हैं।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि चूंकि राहुल गांधी अभी नादान और कच्ची मिट्टी के लौंधे हैं अतः उन्हें
आकार लेने और तपने में अभी समय है तब तक के लिए मनमोहन ंिसंह पर दुबारा दांव लगाना उचित
नहीं होगा। सोनिया के पास मनमोहन जैसा दूसरा ‘यस मैन‘ नहीं है। इसलिए संभवतः सोनिया को ही यह
मशविरा दिया गया है कि पहले सोनिया के त्याग को हाईलाईट करवा दिया जाए उसके बाद उसी की आड़
में कुछ समय के लिए ही सही देश की बागडोर सोनिया गांधी के हाथों में परोक्ष के बजाए प्रत्यक्ष रूप से
सौंप दी जाए।
सियासी गलियारों मे चल रही बयार के अनुसार समाजवादी पार्टी के निजाम मुलायम सिंह यादव और
त्रणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के बीच छः माह पूर्व ही यह समझौता हो गया था कि वे दोनों मिलकर
कलाम का नाम आगे बढ़ाएंगे। इस बारे में दोनों ने कलाम से चर्चा कर उनकी सहमति भी प्राप्त कर ली
थी। कलाम के करीबियों का दावा है कि इस समीकरण के चलते कलाम अपनी आटोबायोग्राफी जल्द से
जल्द पूरा कर बाजार में लाना चाहते थे।
इस पुस्तक में सोनिया गांधी के प्रहसन को काफी हल्के रूप में वर्णित किया गया था। जब कलाम का
नाम ममता मुलायम ने आगे बढ़ाया तो कलाम ने भी अपनी किताब को समाप्त करने की गति तेज कर
दी। कहते हैं कि आधी अधूरी यह किताब किसी तरह पत्रकार एम.जे.अकबर ने पढ़ने के लिए हासिल कर
ली। कांग्रेस के प्रति अकबर की पुरानी निष्ठा एक बार बलवती हुई और उन्होंने इस किताब की पांडुलिपि
को सोनिया के करीबी सुमन दुबे को पढ़ने को भेज दी। बरास्ता सुमन दुबे यह किताब जा पहुंची सोनिया के
दरबार।
बताते हैं कि चूंकि सोनिया काफी व्यस्त थीं, इसलिए जनार्दन रेड्डी ने इसे पढ़कर इसके भावार्थ सोनिया
को बताए। उधर, इसी बीच सोनिया और ममता की मुलाकात हुई। सोनिया ने सामान्य तौर इस किताब के
वाक्यों का जिकर करते हुए ममता के सामने दो नाम रखकर उसे सार्वजनिक करने को कह दिया। कहते हैं
कि इसके बाद कांग्रेस के संकटमोचकों ने अपना खेल खेला।
कलाम के एक करीबी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि कांग्रेस की राजमाता के एक दूत ने
जाकर कलाम की चिरौरी की और कहा कि इसमें सोनिया प्रसंग को दुबारा लिखा जाए जिसमें सोनिया
को त्याग की प्रतिमूर्ति प्रदर्शित किया जाए। कलाम इसके लिए पहले तो राजी नहीं हुए पर जब
ब्रम्हास्त्र (जिसका उल्लेख उन्होंने नहीं किया) चलाया गया तब जाकर कहीं कलाम ने अपने ही
लेखन में सोनिया के प्रसंग को काफी हद तक प्रभावशाली बनाने अपनी सहमति दे दी। कहा जाता है कि
कलाम की पुस्तक में सोनिया प्रकरण और किसी ने नहीं वरन् सोनिया के एक करीबी हिन्दी के बेहतरीन
जानकार द्वारा लिखा गया है।
कलाम की किताब के अंश लीक होते ही कांग्रेस के रणनीतिकारों द्वारा साधे गए मीडिया ने भी सोनिया
चालीसा का पाठ आरंभ कर दिया। इस सबके बीच विपक्ष की सारी दलीलें नक्कारखाने में तूती ही साबित
हुईं। यक्ष प्रश्न तो आज भी यही है कि सालों बाद आखिर सोनिया के महिमा मण्डन की आवश्यक्ता
क्यों आन पड़ी? क्यों कलाम की अंतरात्मा को जागने में एक दशक के लगभग का समय लगा? अगर
सोनिया प्रधानमंत्री बन सकती थीं तो फिर जनता पार्टी के सुप्रीमो सुब्रह्ण्यम स्वामी के आरोपों पर
कांग्रेस ने मौन क्यों साधे रखा? आखिर 1999 में विदेशी नस्ल के मुद्दे पर अड़े मुलायम सिंह यादव आज
सोनिया की जयजयकार क्यों कर रहे हैं?
हालात इस ओर ही इशारा कर रहे हैं कि वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह अब सरकार का नेतृत्व करने में
अक्षम ही साबित हो चुके हैं। प्रणव मुखर्जी महामहिम की दौड़ में हैं, मनमोहन का सक्सेसर बनने के
लिए कांग्रेस के अंदर घमासान मचा हुआ है। ए.के.अंटोनी, पलनिअप्पम चिदम्बरम, सोमनहल्ली मलैया
कृष्णा, सुशील कुमार शिंदे, गुलाम नबी आजाद, कमल नाथ, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, जयराम रमेश
के अलावा शरद पवार भी पीएम की कुर्सी पर बैठने लाबिंग कर रहे हैं।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में उपरी तौर पर तो सब कुछ सामान्य ही दिख रहा है
किन्तु अंदर के अंदर हालात काफी हद तक विस्फोटक ही माने जा सकते हैं। इन परिस्थितियों में हालात
को संभालने के लिए नेहरू गांधी परिवार के सदस्य को ही प्रधानमंत्री की कुर्सी थामना अत्यावश्यक हो
गया है। प्रियंका वढ़ेरा इसके लिए तैयार नहीं हैं, राहुल को आला नेता आज भी अपरिपक्व की श्रेणी में ही
रख रहे हैं। लिहाजा, अब सोनिया गांधी को ही आगे आना होगा।
सोनिया के आगे आने पर उनके सामने सबसे बड़ा मुद्दा विदेशी नस्ल का है। विदेशी मूल की होने के
कारण उनकी स्वीकार्यता लगभग नगण्य ही मानी जा सकती है। संभवतः यही कारण है कि कांग्रेस के
रणनीतिकारों ने विदेशी नस्ल होने के बाद प्रधानमंत्री जैसे पद के त्याग की मनगढंत कहानी वह भी
पूर्व महामहिम एपीजे अब्दुल कलाम से गढ़वाकर सोनिया के प्रति सिंपेथी बटोरने का कुत्सित प्रयास
किया है।
कांग्रेस के संकटमोचक भले ही शतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर यह मान लें कि उन्हें कोई नहीं
देख रहा पर सोनिया के प्रति अचानक उमड़ी सिंपेथी जनता भांप चुकी है और उनकी आंखों के सामने हुए
घपले घोटाले, भ्रष्टाचार के नंगे नाच और उनके विदेशी नस्ल के मामले को शायद ही जनता भुला पाए।
माना जा रहा है कि अपने आप को त्याग की प्रतिमूर्ति प्रचारित कर चुनिंदा मीडिया घरानों के माध्यम
से अपनी छवि निर्माण कर टीआरपी बढ़वाकर सोनिया अपने उस त्याग को भुनाने की कोशि में हैं। हालत
देखकर, आने वाले समय में अगर सोनिया गांधी का डाक का पता 10, जनपथ (बतौर सांसद सोनिया को
आवंटित सरकारी आवास) से बदलकर 7, रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री का आवास) हो
जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।