कहीं धूप कहीं छाव
एक तरपफ मंहगाइ -महंगाइ का शोर मच रहा है। लोग रोजमराZ की चीजों की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं। हर आम आदमी हैरान-परेशान है। कि आखिर यह महंगाइZ का भूत कब उतरेगा? किसान से लेकर मज+दूर वगZ में हाहाकार है कि भला इस महंगाइZ वेफ ज+माने में उनका गुज+ारा होगा तो वैफसे? इसमें देश वेफ अन्नदाता यानी किसानों की स्थिति तो और भी अधिक दयनीय है। मानसून का अल्हड़पन और सरकार की सख्त कजZ+ अदायगी सिस्टम किसानों की रीढ़ तोड़ रखी है। नतीजा कजZ अदायगी में विपफलता और उसवेफ अपमान से बचने वेफ लिए किसान मौत को गले लगाना ज्यादा मुपफीद समझते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकाWडZ ब्यूरों वेफ अनूसार वेफवल 2010 में ही तकरीबन 15,964 किसान आत्महत्या कर चुवेफ हैं। बीते 30 दिनों वेफ भीतर ही आंध्र प्रदेश वेफ 90 किसान जान दे चुवेफ हैं। विदभZ में तो महज सौ दिनों वेफ भरतर सैंकड़ों किसान मौत को गले लगा चुवेफ हैं। नवंबर में वेफरल में चार किसानों ने कीटनाशक पीकर अपनी जिन्दगी खत्म कर ली तो पंजाब में विगत महीने में दो किसानों ने आत्महत्या कर ली। इन सभी की आत्महत्या करने की वजह एक ही है। चाहे वह पफसल की विपफलता हो, लागत में वृि( हो, बिचौलियों वेफ हाथों शोषण हो। स्वयं आत्महत्या करने वेफ अलावा ये किसान अपने शरीर वेफ अंगों को बेचने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। छोटे और सीमांत किसान वृफषि से पलायन कर भूमिहीन मजबूर वेफ रूप में काम कर रहे है। इतना होने वेफ बावजूद भी किसानों की मौत सिपZफ राजनीति उठापटक और चंद कमेटियों बानाने तक सीमित रह जाती है। कभी सुविधा और संपन्नता की अनशानी माने जाने वाला ट्रैक्टर रखने वाला हर दूसरा किसान आज कजZ वेफ बोझ से दबा है। पंजबा एग्रीकल्चरल यूनिवसिटीZ वेफ एक रिपोटZ वेफ अनुसार, पंजाब वेफ 89 पफीसदी किसान कजZ में डूबे हैं।
ये हालात है भारत जैसे वृफषि प्रधान देश की। जहां किसानों की बदहाली पर कारZवाइZ की कोइZ जुरूरत नहीं समझी जाती, लेकिन उद्योगपति विजय माल्या की कंपनी को बचाने वेफ लिए ‘बेलआउट’ पैवेफज देने की सिपफारिश की जा रही थी, यानि वुफल मिलाकर सरकार की अब तक की आथिZक नीति अमीर को और भी अमीर बनाने और गरीब को और भी गरीब बनाने की रही है। तभी तो देश् में एक तरपफ करोड़पतियों का वुफनबा खड़ा है, जिसे चाहे महंगाइZ आसमान को भी छूए कोइZ पफकZ नहीं पड़ता है, वहीं दूसरी तरपफ वह वगZ है, जिसे महंगाइZ बढ़े पर उन चीजों की मात्राा कम कर दनी पड़ती है। गरीब तबवेफ को तो आज भी कइZ दपेफ आधे पेट से गुजारा करना पड़ता है। इन करोड़पतियों की लिस्ट में खाने से लेकर पहनने-ओढ़न, सजने-सवरने, घूमने-पिफरने वेफ ऐसे-ऐसे उत्पाद होते हैं कि जिसे खरीदनला तो दूर देखना भी आम भारतीय वेफ लिए सपने जैसा है। यही वजह है कि पिछले वुफछ सालों में लग्ज+री उत्पादों वेफ उपभोक्ता वेफ रूप में सबसे बड़े ठिकाने वेफ तौर पर भारत तेजी से पांव पसार रहा है। इस तरह वेफ उत्पादों वेफ खरीददारो की संख्या तबरीबन लाख से उफपर हो गइZ है। एक आंकड़े वेफ मुताबि भारत में लग्जरी उत्पादों वेफ बाजर की तादाद करीब 28,550 रुपये से ज्यादा की है, जो कि अलगे पांच साल में दोगुने से भी ज्यादा हो जाएगा। यानि यह बाजार सालाना 20 पफीसदी से ज्यादा की रफ्रतार से बढ़ रहा है। एक तरपफ तो देश में वैसे लोगों की कमी नहीं है जो ज्यादा से ज्यादा पैसा खचZ करने की हिम्मत रखते हैं। वे जो सिपZफ लग्जरी ब्रांड में ही विश्वास करते हैं। इन लग्जरी ब्रांड में विश्वास करने वाले लोगों में बड़े शहर तो बड़े शहर, छोटे शहर भी अब पीछे नहीं रह गये हैं। मसिZडीज, बीएमडब्ल्यू, आWडी और पोशZे जैसी लग्ज+री गाड़ियों वेफ खरीदार की अगर बात करें तो इनमें लुधियाना, चंडीगढ़, सूरत, नागपुर, पुणे, अमृतसर, कोच्ची, जयपरुर, पटना और लखनउफ जैसे शहर लग्जरी ब्रांड का वेफन्द्र बन गए हैं। लगभग दो करोड़ तक की गाड़ी को अब तब 215 लोगों ने खरीदा है। बेशक कार वेफ मूल्य में बढ़ोत्तरी और पेट्रोल वेफ मूल्य में आए दिन होने वाले इज+ापफा को देखते हुए कार की बिव्रफी मे कमी दजZ की गइZ हो, लेकिन हकीकत यह है कि इसवेफ बावजूद लग्ज+री गाड़ियों को खरीदने वालों की संख्या में कोइZ कमी नहीं है। तकरबीन 20 लाख से उफपर की गाड़ी जैसे कि बीएमडब्ल्यू हो या पिफर आWडी या मसिZडीज इन सभी गाड़ियों ने बीते साल में जमकर मुनापफा कमाया है। रही-सही कसर पफाWमZुला-1 सरीखे कार रेस ने पूरी कर दी। यही वजह है कि बेंटले, राWल्स राWयल, मैबेवेफ और आWस्टिन माटिZन जैसी करों वेफ शो-रूम की जरूरत भारत में महसूस की जाने लगी। ऐसा ही वुफछ हाल मंहगे बाइZक्स का भी है। गाड़ी वेफ अलावा मंहगी व ब्रोडेंड ज्वैलरी व ऐक्ससरीज पर खचZ करना इन करोड़पति उपभोक्ताओं का प्रयि शगल रहा है। तभी तो बीते चंद सालों में देश वेफ अंदर 50 से ज्यादा ब्रांड ज्वैलरी वेफ आ चुवेफ हैं। लग्ज+री ब्रांड का एक बड़ा हिस्सा कपड़े, जूते, पसZ, घड़ी, गैजेटस, चश्मा, बेल्ट आदि का है और इनवेफ मंहगे और विदेशी ब्रांड मे ंदिनों-दिन इजापफा हो रहा है। इटली वेफ ब्राडेड जूते सल्वाडोर पेफरागमो को तो भारत मे अपने स्टोरों की संख्या बढ़ाने की नौबत आ गइZ है। गौरतलब है कि इस ब्रांड वेफ एक जोड़ी जूते की कीमत 60 हज+ार रुपये है। ऐसा ही वुफछ हाल इंग्लैंड की कलानी का है। इनवेफ एक सूट कीम एक लाख रुपये होने क बावजूद भारतीय बाज+ार में इसकी पहुंच लगातार बढ़ती जा रही है। कपड़ों वेफ ब्रांड की अग बात की जाए तो इसमें अरमानी, कलानी, इट्रो, जारा, डीजल, घड़ी में डायर, कटिZयर, बगााWएते और लांजनीन जैसे ब्रांड भारत वेफ एक खास वगZ की पहली पसंद बनती जा रही है। खाने-पीने वेफ मामले में भी उन उपभोक्ताओं की एक खास पसंद है और इन उपभोक्ताओं की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही मंहगे से मंहगे सिगार और शराब वेफ ब्रांडों का बाजार लगातार वृ( आकार लेता जा रहा है। शैंपन हो या पिफर इंटरनेशनल ब्रांड की शराब, इनकी डिमांड बढ़ती ही जा रही है। एक तरह वेफ खास वगZ को ध्यान में रखते हुए ही अब इनवेफ खाने-पीने पर भी विशेष ध्यान रखा जाने लगा है इसलिए बैंकाक स्थित दुनिया वेफ सबसे महंगे रेस्टोरंट लेबुआ का आउटलेट दिल्ली में खुला है, जिसमें एक आदमी क खाने की कीम
2000 रुपये है। यह दो हज+ार रुपये शायद किसी गरीब को पूरे महीने वेफ खाने का बजट हो सकता है। यही नहीं इस खास वगZ वेफ लिए लग्ज+री विला बनाने की होड़ भारतीय रियल एस्टट सेक्टर में देखी जा सकती है, आज 2 करोड़ से उफपर वेफ फ्रलैट्स की भरमार यह बताती है कि भारत में लग्ज+री उत्पदो वेफ उपभोक्ताओ की संख्या बढ़ रही है। ताज्जुब सिपZफ इस बात का होा है, यह सब उसी भारत का हिस्सा है, जहां की 60 पफीसदी आबादी आज भी सिपZफ दो वक्त की रोटी वेफ लिए संघषशील है।